मंगलवार, मई 18, 2021

अलंकार आच्छा

 कंकर-गड्ढे
सड़क पे उभरे
कील-मुहाँसे


घृणा जामन
मरी संवेदनाएँ
लो जमा खून


चिंता डायन
उड़ा ले गई नींद
खा गई चैन


तारों की भीड़ 
चाँद डरा अकेला
छुपता फिरे


तोड़ के नीड़
बेहतर की आस
उड़े परिंदे


दिखता छोटा
दूर क्षितिज पर
बड़ा सूर्य भी


नन्हे का दूध
परिवार का सुख
पीती बोतल


पिता का हाथ
कंक्रीट से निर्मित
रक्षा बंकर


फिर जियेगी
बेटी के ही बहाने
माँ बचपन


बूढ़ा पीपल
देख चुका सदियाँ
गिनता दिन


बेटे चुकाते
नौ महीनों का कर्ज
किश्तों में बाँट


मैं अपने में
अपने ढूँढ़ रहे
मुझे पन्ने में


रिश्तों में धोखा
बाॅल्कनी में सूखता
वफ़ा का पौधा

सत्य अकेला
खड़ा है डटकर
लुढ़का झूठ


सिसक रहा
बाबू की मेज तले
बापू का चित्र



हमारा कल
गमलों में जंगल
स्वयं से छल


-अलंकार आच्छा