डॉ.राजकुमार पाटिल
बर्षा ठहर
नदी नाले उफान
रहम कर
बर्षा ठहर
नदी नाले उफान
रहम कर
यादों का पुल
समय की नदी पे
झूलता हुआ
उदास होगा
तुलसी का वो पौधा
घर मे ताला
बर्षा समेटे
घर के जो बर्तन
संगीत रचे
कूलर खुश
सब ध्यान रखेंगे
गर्मी आ गई
नाम होगा तो
बदनाम भी होगा
जुड़वां दोनों
सुने है बूढें
बूढ़े मन की बातें
कहे चौप
उंगली ब्रुश
हवा का केनवास
कल्पना का चित्र
एक जुगनू
घुप अन्धकार मे
क्या कहता है
आख़री तारा
सूरज से लड़ता
भले वो हारे
गाँव के लोग
नहीं है आधुनिक
पर है मस्त
पुकारना तो
वादियाँ बोलती है
तुम्हारा नाम
वादियाँ बोलती है
तुम्हारा नाम
सुख व दुःख
दो चाकों का खेल
जीवन गाड़ी
पिता की चिंता
पिता बन के जानी
व्यर्थ ही नहीं
व्यर्थ ही नहीं
-डॉ. राजकुमार पाटिल