चयनित हाइकु
डा० राजकुमार पटेल
सच की जीत
क्यों लेती है समय?
अभी क्यों नहीं?
ना जाने मेघ
है कच्चे कच्चे घर,
बरसे जाए
पानी यूं गिरा
सड़कें हुई नदी
घर टापू से
दौड़ती हवा
बर्षा को है नचाती
इशारे पर
नाचती फिजा
बारिश की धुन पे
महक फ़ैली
कठपुलती
खुद कब बोलती
इशारा जाने
ठंडक देता
समय की धूप मे
याद का साया
तराशियें तो
बोल उठे शायद
बेजाँ पत्थर
दिखने लगा
डालियों बीच नभ
पतझर में
बंद मुट्ठी में
नहीं रहती रेत
मुट्ठी तो खोलो
तेज तूफान
टूटे है ऊँचें पेड़
बची है दूब
सूना वो गाँव
कोई नहीं रहता
शहरी सब
आधुनिकता
अगवा कर लाई
गाँव के गाँव
आँख का पानी
अकारण तो नहीं
कोई निशानी
पत्तें में छुपी
नन्ही सी एक बूँद
नदी से डर
दिल मे नीड़
चोंच लिये तिनका
आँख मे चिंता
मेघ मल्हार
हरी हुई धरती
जीवन दायी
लालची मन
बढ़ाता ही जाए
अपना घेरा
चाक पे घुमा
अपनी मिट्टी ज़रा
आकार लेगा
मिट्टी महकी
पात हरे हो गये
बारिश आई
रजाईयों ने
हाथ पैर फैलाये
जाड़ा आ गया
छत पे बैठे
सितारों की चौपाल
जाने क्या बात
बच्चा गुस्से को
इक पल मे भूला
खिलौना मिला
भूखें बच्चों को
क्यों खिलौने दिखाए
खिलौने वाला
सौंधी महक
बादल का शावर
धरा नहाई
चुरा ले गई
चाँद, तारे सब ही
रात चोरनी
पीले पत्ते का
हवा ने हाथ थामा
वक़्त आ गया
चाँद जुलाहा
रात सफ़ेद परी
पूनम हुई
भीगी धूप है
कुछ मोती टीन पे
बारिश गई
मेघ रे मेघ
टपके है ये छत
धीरे बरस
आस का दिया
न बुझा देना कही
वक़्त आएगा
सबसे कटा
जाने कहाँ मै जुडा
समाज कहाँ
शिशु का जन्म
सिर्फ शिशु का नहीं
जन्म माँ का भी
कोई न रोके
बिन वीजा के आये
प्रवासी पंछी
पंछी भटके
दिन मे लौट रहे
सूर्य ग्रहण
सूर्य से गिर
सीमेंट के वन मे
धूप भटकी
दौड़े हवा मे
महुए की गंध से
बौराई धूप
जड़ो मे पानी
सूख गया शायद
सींच ये पौंधा
रुई का रूप
हाथी के पग धरे
बादल आये
चाँद छिला है
रात की गुण्डागर्दी
कितनी हावी
धूप का सोना
रात चांदी की थाल
सबका धन
रोडे पत्थर
जले बुझे टायर
कर्फ्यू का दिन
माँ की कीमत
अनाथ जनता है
है अनमोल
सूरज क्या है
लोहार को पता है
रोज ही पीटता
गीत गाती है
इक नयी मछली
बूढ़े तालाब मे
कोंपल फूटी
जंग लगे लोहे से
मिट्टी थी थोड़ी
पीछा करता
घने मेघों का दल
घर को चल
नींद का धन
मिले नहीं सबको
श्रमिक बन
आँगन तेरा
दाने भी है तेरे
लौट आ पंछी
होली आई तो
धुले रंगों के साथ
बैर भाव भी
सूरज लगे
ऊन की गेंद कोई
जाड़े का खेल
चाँद की रोटी
थोड़ी थोड़ी खा जाए
न जाने कौन
मरा नही वो
जिया देश के लिये
शहीद हुआ
शबे-मालवा
कहा किसी ने जब
इंदौर दिखा
देखा इन्ही ने
जीवन को जानते
ये आदिवासी
बदल देगी
उसकी अदालत
हर फैसला
टीन पे बजा
बारिश का संतूर
सुन्दर बड़ा
कुछ न कहा
बेचारी जनता ने
सब है सहा
आज बंद है
देश पिछड़ा फिर
एक दिन को
केश सुखाये
आसमान की परी
फुहार पड़ी
पेड़ था यहाँ
तरक्की ने काटा है
पार्किंग बनी
धूप ही धूप
रजाईयों मे है
सूर्य मे सूखी
सूर्य की कूची
आकाश की पेंटिंग
सांझ का दृश्य
शाम के बाद
ध्यानी हुआ आकाश
शांति ही शांति
नीम का पेड़
मीठी छाँव बांटता
अजब बात
आम चख के
फ़ेंक रहा ये तोता
कैसा रईस
बिंदु भी नहीं
ब्रह्मांड मे धरती
तुम क्या चीज़
जब भी कोई
ऊँचाई पे पहुँचा
अकेला हुआ
बेटी हुई है
दाई धीरे से बोली,
खामोश सब
वर्षा के बाद
धूप छींकती हुई
खिड़की पर
पेड़ पे बूँदें
नाच रही अब भी
बारिश थमी
दिल की चिट्ठी
सब तक पहुंचाता
आँसू डाकिया
घर घर मे
टप टप करता
सावन राग
अच्छा ही लगे
हर समय मौन
ज़रूरी नहीं
गाँव के पाँव
चादर के अंदर
पिछड़े रहे
नदी बैठी है
सिंदूरी आभा लिये
शाम के द्वार
गोदी मे बच्चा
सर गठरी लिये
माँ मजदूर
एक कंकर
लहर ही लहर
नयन तट