बुझने लगे
ईर्ष्या भरी हवा से
आस्था के दीप।
***
कोई गरीब
जब सिर उठाता
भूकम्प आता।
***
सो गया आप
पेट भर कुत्ते का
भूखा था बाप।
***
थाने में पीटा
था कसूर इतना
बेकसूर था।
***
साड़ी को खींचा
सभी चुप हो गए
भीष्म थे सब।
***
आया बसंत
बिहँस उठे भृंग
सुनायें छंद।
***
दलाली खुली
राजनीति की कुर्सी
पृथ्वी-सी हिली।
***
दु:खी हो गात
अमावस-सी लगे
चॉंदनी रात।
***
सबको पता
पीले पात-से अब
हैं मेरे पिता।
***
है तीव्र ज्वाला
फिर किसने रवि
सांचे में ढाला।
***
नाम है गुलाब
कांटा बन जिए
वे तो जनाव।
***
रंभती रही
कसाइयों के घर
गाय-सी बहू।
***
काटा जो नींम
वृक्ष नहीं बाबरे
मारा हकीम।
***
पेड़ है कटा
रो रही लिपट के
तन से लता।
***
दुष्टों के साथ
कमल की तरह
मैं रहा साफ।
***
जब भी मिले
स्वार्थ की कीचड़ में
सने ही मिले।
***
कर लो शोध
स्वर्ग से बढ़कर
है,मॉं की गोद।
***
नैनों ने कहा
पिताजी ने समझा
मॉं तो चुप थी।
***
सोचें सिलायें
अहल्या-सी तरेंगीं
राम तो आयें।
***
थरथराया
रेल के पुल जैसा
कई बार मैं।
***
अति का सब्र
लाश लिए गोदी में
बैठी हैं कब्र।
***
हर युद्ध में
जीते कोई भी पक्ष
हारे इंसान।
***
ईर्ष्या भरी हवा से
आस्था के दीप।
***
कोई गरीब
जब सिर उठाता
भूकम्प आता।
***
सो गया आप
पेट भर कुत्ते का
भूखा था बाप।
***
थाने में पीटा
था कसूर इतना
बेकसूर था।
***
साड़ी को खींचा
सभी चुप हो गए
भीष्म थे सब।
***
आया बसंत
बिहँस उठे भृंग
सुनायें छंद।
***
दलाली खुली
राजनीति की कुर्सी
पृथ्वी-सी हिली।
***
दु:खी हो गात
अमावस-सी लगे
चॉंदनी रात।
***
सबको पता
पीले पात-से अब
हैं मेरे पिता।
***
है तीव्र ज्वाला
फिर किसने रवि
सांचे में ढाला।
***
नाम है गुलाब
कांटा बन जिए
वे तो जनाव।
***
रंभती रही
कसाइयों के घर
गाय-सी बहू।
***
काटा जो नींम
वृक्ष नहीं बाबरे
मारा हकीम।
***
पेड़ है कटा
रो रही लिपट के
तन से लता।
***
दुष्टों के साथ
कमल की तरह
मैं रहा साफ।
***
जब भी मिले
स्वार्थ की कीचड़ में
सने ही मिले।
***
कर लो शोध
स्वर्ग से बढ़कर
है,मॉं की गोद।
***
नैनों ने कहा
पिताजी ने समझा
मॉं तो चुप थी।
***
सोचें सिलायें
अहल्या-सी तरेंगीं
राम तो आयें।
***
थरथराया
रेल के पुल जैसा
कई बार मैं।
***
अति का सब्र
लाश लिए गोदी में
बैठी हैं कब्र।
***
हर युद्ध में
जीते कोई भी पक्ष
हारे इंसान।
***
-सन्तोष कुमार सिंह