रविवार, अप्रैल 09, 2023

राजेन जयपुरिया

खाली पींजरा
हिलती अलगनी
पंछी नभ में !
*

सूरज जागा
ठिठुरता हुआ-सा
बिन कम्बल !
*

शीत कपोत
डैने फड़फड़ाये
ऊँघती ऊषा !
*

तमकी धारा
तमतमाया रवि
सहमा जरा !
*

सूरज तवा
सेंक रही रोटियाँ
गरम हवा !
*

झाँकता जाता
पावस में नीरद
स्त्रोत्र सुनाता !
*

बटुक भौंरा
वेद गुनगुनाए
गली–गली में !
*

भाँग गुलाल
होली औ धमाल
गूँजे चौपाल !
*

झपकी लेता
तारा, सवेरा उसे
थपकी देता !
*

पंक ही मिला
कुमुद–पद्म खिला
कोई न गिला !
*

गोधूलि बेला
हाँफता लौट चला
अर्क अकेला !
*

जेठ ने लिखी
पाती पुरवाई को
आओ मितवा !
*

लू जब चले
सरकी पगडंडी
रहँट तले !
*

पुलिन पर
कुल–कुल की ॠचा
गाये समीर !
*

गले मिलते
सफेद काले मेघ
होली खेलते !
*

मन निर्बन्ध
महुए की सुगन्ध
पथिक अंध !
*

बैरिन बेरी
कदली–पाती डरी
चीर न डाले !
*

हिम के संग
हेम भी बदरंग
तुषार दंग !
*

शीत लहर
बज रही ठठरी
दुबका चाँद !
*

दोहरी हुई
लाज से, पवन को
छूकर लता !
*

देखो तनिक
बसन्त है धनिक
बाँटे कलियाँ !
*

छटपटाते
सुधि के स्वर, कहाँ
लौट वे पाते ?
*

हवाएँ ठंडी
हैं बड़ी ही घमंडी
इतरा रही !
*

भावों से भरे
हृदय को रुचती
अगायी गीति !
*

कब मिलेंगे
अवनि औ अम्बर?
अबोली प्रीति !
*

तुम न आये
सदा निकट रही
तुम्हारी स्मृति !
*

व्योम-छतरी
बचा नहीं पाये क्यों
भीगे धरती ?
*

एकान्त भूत
दबोचे, कातें तब
सुधियाँ सूत !
*

गुदगुदातीं
चीटियाँ भी पेड़ को
जब चढ़तीं !
*

मौन को तोड़ें
लहरों के मंजीरे
नदिया तीरे !
*

हँसता फूल
रोये मन ही मन
होना है धूल !
*

मन पपीहा
टेरता अहर्निश
सुने ना पिया !
***

-डॉ॰ राजेन जयपुरिया