खाली पींजरा
हिलती अलगनी
पंछी नभ में !
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सूरज जागा
ठिठुरता हुआ-सा
बिन कम्बल !
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शीत कपोत
डैने फड़फड़ाये
ऊँघती ऊषा !
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तमकी धारा
तमतमाया रवि
सहमा जरा !
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सूरज तवा
सेंक रही रोटियाँ
गरम हवा !
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झाँकता जाता
पावस में नीरद
स्त्रोत्र सुनाता !
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बटुक भौंरा
वेद गुनगुनाए
गली–गली में !
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भाँग गुलाल
होली औ धमाल
गूँजे चौपाल !
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झपकी लेता
तारा, सवेरा उसे
थपकी देता !
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पंक ही मिला
कुमुद–पद्म खिला
कोई न गिला !
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गोधूलि बेला
हाँफता लौट चला
अर्क अकेला !
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जेठ ने लिखी
पाती पुरवाई को
आओ मितवा !
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लू जब चले
सरकी पगडंडी
रहँट तले !
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पुलिन पर
कुल–कुल की ॠचा
गाये समीर !
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गले मिलते
सफेद काले मेघ
होली खेलते !
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मन निर्बन्ध
महुए की सुगन्ध
पथिक अंध !
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बैरिन बेरी
कदली–पाती डरी
चीर न डाले !
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हिम के संग
हेम भी बदरंग
तुषार दंग !
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शीत लहर
बज रही ठठरी
दुबका चाँद !
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दोहरी हुई
लाज से, पवन को
छूकर लता !
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देखो तनिक
बसन्त है धनिक
बाँटे कलियाँ !
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छटपटाते
सुधि के स्वर, कहाँ
लौट वे पाते ?
*
हवाएँ ठंडी
हैं बड़ी ही घमंडी
इतरा रही !
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भावों से भरे
हृदय को रुचती
अगायी गीति !
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कब मिलेंगे
अवनि औ अम्बर?
अबोली प्रीति !
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तुम न आये
सदा निकट रही
तुम्हारी स्मृति !
*
व्योम-छतरी
बचा नहीं पाये क्यों
भीगे धरती ?
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एकान्त भूत
दबोचे, कातें तब
सुधियाँ सूत !
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गुदगुदातीं
चीटियाँ भी पेड़ को
जब चढ़तीं !
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मौन को तोड़ें
लहरों के मंजीरे
नदिया तीरे !
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हँसता फूल
रोये मन ही मन
होना है धूल !
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मन पपीहा
टेरता अहर्निश
सुने ना पिया !
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-डॉ॰ राजेन जयपुरिया