tag:blogger.com,1999:blog-132532612023-12-11T19:48:39.755-08:00हाइकु-कानन[हिन्दी हाइकुकारों की चुनी हुई हाइकु कविताओं का संकलन है हाइकु-कानन]
{अभी यह संकलन निर्माणाधीन है}Unknownnoreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-13253261.post-58668825474871258802023-04-09T22:19:00.004-07:002023-04-09T22:19:15.920-07:00डॉ॰ राजेन जयपुरिया<div align="justify"><a href="http://www.flickr.com/photos/vyomjpg/19914543/" title="Photo Sharing"><img alt="rajen jaipuria" height="179" src="http://photos16.flickr.com/19914543_607e49a1e2_m.jpg" style="height: 136px; width: 101px;" width="143" /></a><br /></div><div align="justify">13 अगस्त 1948 को जयपुर, कोरापुट (ओड़ीशा) में जन्में डॉ॰ राजेन जयपुरिया हिन्दी साहित्य में एम॰ए॰ तथा पी-एच॰डी॰ हैं। हिन्दी साहित्य में गहरी अभिरुचि रखने वाले डॉ॰ जयपुरिया 1968 से हिन्दी साहित्य की अनेक विधाओं में सृजन कर रहे हैं। आपकी रचनाओं का प्रकाशन राष्ट्रीय स्तर की पत्र–पत्रिकाओं में हो रहा है, अनेक सहयोगी संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित हुईं हैं। हाइकु-दर्पण में आपके हाइकु प्रकाशित हुए हैं। इंन्टरनेट पर भी आपकी रचनाओं का प्रकाशन हुआ है।</div><div align="justify">[हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध जालघार <a href="http://www.anubhuti-hindi.org">अनुभूति</a> पर <a href="http://www.anubhuti-hindi.org/haiku/rajen_jaipuria.htm">माह के हाइकुकार </a>के रूप में आपके हाइकु प्रकाशित हुए हैं तथा हिन्दी कविताओं के काव्य संकलन काव्य कुंज में आपकी कविताएँ प्रकाशित हुई हैं।]</div><div align="justify"><strong><span style="color: #00cccc;">प्रकाशित कृतियाँ</span></strong>- सोपानों के स्वर (काव्य-संग्रह)अगस्त 2003<br /><strong><span style="color: #00cccc;">सम्प्रति</span></strong>- ओड़िशा शिक्षा सेवा के अन्तर्गत हिन्दी अध्यापन<br /><strong><span style="color: #00cccc;">सम्पर्क</span></strong>- रीडर एवं अध्यक्ष, हिन्दी-विभाग,<br />विनायक आचार्य महाविद्यालय,<br />पोस्ट- ब्रह्मपुर (गंजाम) ओड़िशा -760006<br /><strong><span style="color: #6600cc;">दूरभाष</span></strong>-0680-2261691<br /><span style="color: #6600cc;">ई मेल</span>- dr_rjaipuria@yahoo.co.in</div>Unknownnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-13253261.post-17110344786386967332023-04-09T22:12:00.005-07:002023-04-09T22:12:52.077-07:00 राजेन जयपुरिया<div>खाली पींजरा</div><div>हिलती अलगनी</div><div>पंछी नभ में !</div><div>*</div><div><br /></div><div>सूरज जागा</div><div>ठिठुरता हुआ-सा</div><div>बिन कम्बल !</div><div>*</div><div><br /></div><div>शीत कपोत</div><div>डैने फड़फड़ाये</div><div>ऊँघती ऊषा !</div><div>*</div><div><br /></div><div>तमकी धारा</div><div>तमतमाया रवि</div><div>सहमा जरा !</div><div>*</div><div><br /></div><div>सूरज तवा</div><div>सेंक रही रोटियाँ</div><div>गरम हवा !</div><div>*</div><div><br /></div><div>झाँकता जाता</div><div>पावस में नीरद</div><div>स्त्रोत्र सुनाता !</div><div>*</div><div><br /></div><div>बटुक भौंरा</div><div>वेद गुनगुनाए</div><div>गली–गली में !</div><div>*</div><div><br /></div><div>भाँग गुलाल</div><div>होली औ धमाल</div><div>गूँजे चौपाल !</div><div>*</div><div><br /></div><div>झपकी लेता</div><div>तारा, सवेरा उसे</div><div>थपकी देता !</div><div>*</div><div><br /></div><div>पंक ही मिला</div><div>कुमुद–पद्म खिला</div><div>कोई न गिला !</div><div>*</div><div><br /></div><div>गोधूलि बेला</div><div>हाँफता लौट चला</div><div>अर्क अकेला !</div><div>*</div><div><br /></div><div>जेठ ने लिखी</div><div>पाती पुरवाई को</div><div>आओ मितवा !</div><div>*</div><div><br /></div><div>लू जब चले</div><div>सरकी पगडंडी</div><div>रहँट तले !</div><div>*</div><div><br /></div><div>पुलिन पर</div><div>कुल–कुल की ॠचा</div><div>गाये समीर !</div><div>*</div><div><br /></div><div>गले मिलते</div><div>सफेद काले मेघ</div><div>होली खेलते !</div><div>*</div><div><br /></div><div>मन निर्बन्ध</div><div>महुए की सुगन्ध</div><div>पथिक अंध !</div><div>*</div><div><br /></div><div>बैरिन बेरी</div><div>कदली–पाती डरी</div><div>चीर न डाले !</div><div>*</div><div><br /></div><div>हिम के संग</div><div>हेम भी बदरंग</div><div>तुषार दंग !</div><div>*</div><div><br /></div><div>शीत लहर</div><div>बज रही ठठरी</div><div>दुबका चाँद !</div><div>*</div><div><br /></div><div>दोहरी हुई</div><div>लाज से, पवन को</div><div>छूकर लता !</div><div>*</div><div><br /></div><div>देखो तनिक</div><div>बसन्त है धनिक</div><div>बाँटे कलियाँ !</div><div>*</div><div><br /></div><div>छटपटाते</div><div>सुधि के स्वर, कहाँ</div><div>लौट वे पाते ?</div><div>*</div><div><br /></div><div>हवाएँ ठंडी</div><div>हैं बड़ी ही घमंडी</div><div>इतरा रही !</div><div>*</div><div><br /></div><div>भावों से भरे</div><div>हृदय को रुचती</div><div>अगायी गीति !</div><div>*</div><div><br /></div><div>कब मिलेंगे</div><div>अवनि औ अम्बर?</div><div>अबोली प्रीति !</div><div>*</div><div><br /></div><div>तुम न आये</div><div>सदा निकट रही</div><div>तुम्हारी स्मृति !</div><div>*</div><div><br /></div><div>व्योम-छतरी</div><div>बचा नहीं पाये क्यों</div><div>भीगे धरती ?</div><div>*</div><div><br /></div><div>एकान्त भूत</div><div>दबोचे, कातें तब</div><div>सुधियाँ सूत !</div><div>*</div><div><br /></div><div>गुदगुदातीं</div><div>चीटियाँ भी पेड़ को</div><div>जब चढ़तीं !</div><div>*</div><div><br /></div><div>मौन को तोड़ें</div><div>लहरों के मंजीरे</div><div>नदिया तीरे !</div><div>*</div><div><br /></div><div>हँसता फूल</div><div>रोये मन ही मन</div><div>होना है धूल !</div><div>*</div><div><br /></div><div>मन पपीहा</div><div>टेरता अहर्निश</div><div>सुने ना पिया !</div><div>***</div><div><br /></div><div>-डॉ॰ राजेन जयपुरिया</div>Unknownnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-13253261.post-91296639706063654622023-03-23T20:21:00.007-07:002023-03-23T20:21:46.187-07:00सन्तोष कुमार सिंह<a href="http://photos1.blogger.com/blogger/845/1158/1600/santosh%20kumar%20singh%20photo1.jpg"><img alt="" border="0" height="134" src="http://photos1.blogger.com/blogger/845/1158/200/santosh%20kumar%20singh%20photo1.jpg" style="cursor: hand; float: left; height: 150px; margin: 0px 10px 10px 0px; width: 117px;" width="120" /></a><br /><a href="http://photos1.blogger.com/blogger/845/1158/1600/santosh%20kumar%20singh%20photo.jpg"></a><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>सन्तोष कुमार सिंह<br /><br /><span style="color: #006600;">जन्म-</span> 8 जून 1951<br /><span style="color: #006600;">सम्प्रति-</span> इंडियन आयल कारपोरेशन लि. मथुरा रिफाइनरी में उत्पादन अभियन्ता पद पर कार्यरत।<br /><span style="color: #006600;">लेखन-</span><br />बाल कविताएँ, गीत, ग़जल, निबन्ध, व्यंग्य कविताएँ, हाइकु कविताएँ तथा कहानियाँ।<br /><span style="color: #006600;">प्रसारण-</span><br />आकाशवाणी मथुरा से कविताओं का प्रसारण।<br /><span style="color: #006600;">प्रकाशन-<br /></span>* परमवीर प्रताप (खण्ड-काव्य)<br />* सुन रे मीत नारी के गीत (गीत संकलन)<br />* पेड़ का दर्द (पर्यावरण शिक्षा बाल गीत)<br />* आलोक स्मृति (शोक काव्य)<br />* पर्यावरण की कहानी दादा जी की जुबानी (बाल कहानी)<br />* हाथी गया स्कूल (बाल गीत)<br />* बन्दर का अदृभुत न्याय (बाल गीत)<br />* आस्था के दीप (हाइकु-संग्रह)<br />* आईना सच कहे (हाइकु-संग्रह)<br />* अछूता कन्या (कहानी-संग्रह)<br />* नीति शतक काव्यानुवाद<br />* कथा द्वादश ज्योर्तिलिंग<br /><span style="color: #006600;">सम्पादन व सहयोग-<br /></span>* मथुरा रिफाइनरी न्यूज जनरल<br />* राजभाषा मासिका पत्रिका<br />* कल्पवृक्ष<br />* ब्रजांगना<br /><span style="color: #006600;">सम्मान व पुरस्कार-<br /></span>* कवि सभा दिल्ली से 'कवि श्री' सम्मान।<br />* पं.रामनारायण शास्त्री 'कहानी पुरस्कार' इन्दौर से।<br />* इंडियन आयल मुख्यालय दिल्ली से निबन्ध पर अखिल भारतीय स्तर पर पुरस्कार।<br />* अनेक निबन्ध पुरस्कृत<br /><span style="color: #006600;">सम्पर्क-</span><br /><span style="color: #660000;">'चित्रनिकेतन', मोतीकुंज एक्सटेन्शन<br />मथुरा- 281001 (उ॰प्र॰)<br /></span><span style="color: #3333ff;">फोन- 0565-2432284<br />मोबाइल- 9412492636<br /></span>e-mail- <span style="color: #cc0000;"><a href="mailto:kumar_santosh@iocl.co.in">kumar_santosh@iocl.co.in</a></span></div>Unknownnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-13253261.post-86416764014326338322023-03-23T20:14:00.003-07:002023-03-23T20:14:21.246-07:00संतोष कुमार सिंह<div align="left">बुझने लगे<br />ईर्ष्या भरी हवा से<br />आस्था के दीप।<br />***<br /><br />कोई गरीब<br />जब सिर उठाता<br />भूकम्प आता।<br />***<br /><br />सो गया आप<br />पेट भर कुत्ते का<br />भूखा था बाप।<br />***<br /><br />थाने में पीटा<br />था कसूर इतना<br />बेकसूर था।<br />***<br /><br />साड़ी को खींचा<br />सभी चुप हो गए<br />भीष्म थे सब।<br />***<br /><br />आया बसंत<br />बिहँस उठे भृंग<br />सुनायें छंद।<br />***<br /><br />दलाली खुली<br />राजनीति की कुर्सी<br />पृथ्वी-सी हिली।<br />***<br /><br />दु:खी हो गात<br />अमावस-सी लगे<br />चॉंदनी रात।<br />***<br /><br />सबको पता<br />पीले पात-से अब<br />हैं मेरे पिता।<br />***<br /><br />है तीव्र ज्वाला<br />फिर किसने रवि<br />सांचे में ढाला।<br />***<br /><br />नाम है गुलाब<br />कांटा बन जिए<br />वे तो जनाव।<br />***<br /><br />रंभती रही<br />कसाइयों के घर<br />गाय-सी बहू।<br />***<br /><br />काटा जो नींम<br />वृक्ष नहीं बाबरे<br />मारा हकीम।<br />***<br /><br />पेड़ है कटा<br />रो रही लिपट के<br />तन से लता।<br />***<br /><br />दुष्टों के साथ<br />कमल की तरह<br />मैं रहा साफ।<br />***<br /><br />जब भी मिले<br />स्वार्थ की कीचड़ में<br />सने ही मिले।<br />***<br /><br />कर लो शोध<br />स्वर्ग से बढ़कर<br />है,मॉं की गोद।<br />***<br /><br />नैनों ने कहा<br />पिताजी ने समझा<br />मॉं तो चुप थी।<br />***<br /><br />सोचें सिलायें<br />अहल्या-सी तरेंगीं<br />राम तो आयें।<br />***<br /><br />थरथराया<br />रेल के पुल जैसा<br />कई बार मैं।<br />***<br /><br /><br />अति का सब्र<br />लाश लिए गोदी में<br />बैठी हैं कब्र।<br />***<br /><br />हर युद्ध में<br />जीते कोई भी पक्ष<br />हारे इंसान।<br />***<br /><br /></div><div align="center"><span style="color: #990000;">-सन्तोष कुमार सिंह</span></div>Unknownnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-13253261.post-13324523200710255482023-03-23T20:07:00.002-07:002023-03-23T20:07:14.370-07:00सन्तोष कुमार सिंह के हाइकुले पिचकारी<br />प्रकृति ने रॅंग दीं<br />तितली सारी।<br />***<br /><br />तितली व्यस्त<br />बदल नहीं पाई<br />होली के वस्त्र।<br />***<br /><br />माँगती अब<br />ये जहरीली हवा<br />खुद को दवा।<br />***<br /><br />शिव हैं वृक्ष<br />प्रदूषण का विष<br />पीते हैं नित्य।<br />***<br /><br />कैसे ये फूल<br />गले ही पड़ गए<br />भद्र जनों के।<br />***<br /><br />भूकम्प आया<br />देखता रहा व्योम<br />प्राणों का होम।<br />***<br /><br />धरती हिले<br />अकेले ही मगर<br />दिल लाखों में।<br />***<br /><br />बहिन-भाई<br />भूकम्प औ सुनामी<br />दोनों कसाई।<br />***<br /><br />बूँद ही नहीं<br />मानव भी बनता<br />गुणों से मोती।<br />***<br /><br />भले व चंगे<br />पशु-पक्षी सहिष्णु<br />कफ्र्यू न दंगे।<br />***<br /><br />बलवान था<br />शेर नहीं खा पाया<br />चिन्ता ने खाया।<br />***<br /><br />निशा है रोती<br />पत्तों पर बिखेरे<br />दु:ख के मोती।<br />***<br /><br />सूखती रहीं<br />फूलों के बिछोह में<br />डालियाँ वहीं।<br />***<br /><br />विधवा हुई<br />फूल जैसी जिन्दगी<br />पहाड़ हुई।<br />***<br /><br />सृष्टि की चूक<br />प्राणियों को दे गई<br />निकम्मी भूख।<br />***<br /><br />काँटों के बीच<br />फूलों की तरह ही<br />मुस्काना सीख।<br />***<br /><br />धुआँ विषैला<br />रोज करे नभ का<br />आंचल मैला।<br />***<br /><br />भागा अँधेरा<br />दीपक ने उखाड़ा<br />तम का डेरा।<br />***<br /><br />हो गई हद<br />कानून से ऊपर<br />उनका कद।<br />***<br /><div align="center"><br /><span style="color: #990000;"><br /></span></div><div style="text-align: left;"><span style="color: #990000;">-सन्तोष कुमार सिंह</span></div>Unknownnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-13253261.post-3431319586853985982021-05-18T08:54:00.003-07:002021-05-18T08:54:29.870-07:00अलंकार आच्छा<div style="text-align: left;"> कंकर-गड्ढे<br />सड़क पे उभरे<br />कील-मुहाँसे<br /><span style="white-space: pre;"> </span></div><div style="text-align: left;"><br /></div><div style="text-align: left;"><br />घृणा जामन<br />मरी संवेदनाएँ<br />लो जमा खून<br /><span style="white-space: pre;"> </span></div><div style="text-align: left;"><br /></div><div style="text-align: left;"><br />चिंता डायन<br />उड़ा ले गई नींद<br />खा गई चैन<br /><span style="white-space: pre;"> </span></div><div style="text-align: left;"><br /></div><div style="text-align: left;"><br />तारों की भीड़ <br />चाँद डरा अकेला<br />छुपता फिरे<br /><span style="white-space: pre;"> </span></div><div style="text-align: left;"><br /></div><div style="text-align: left;"><br />तोड़ के नीड़<br />बेहतर की आस<br />उड़े परिंदे<br /><span style="white-space: pre;"> </span></div><div style="text-align: left;"><br /></div><div style="text-align: left;"><br />दिखता छोटा<br />दूर क्षितिज पर<br />बड़ा सूर्य भी<br /><span style="white-space: pre;"> </span></div><div style="text-align: left;"><br /></div><div style="text-align: left;"><br />नन्हे का दूध<br />परिवार का सुख<br />पीती बोतल<br /><span style="white-space: pre;"> </span></div><div style="text-align: left;"><br /></div><div style="text-align: left;"><br />पिता का हाथ<br />कंक्रीट से निर्मित<br />रक्षा बंकर<br /><span style="white-space: pre;"> </span></div><div style="text-align: left;"><br /></div><div style="text-align: left;"><br />फिर जियेगी<br />बेटी के ही बहाने<br />माँ बचपन<br /><span style="white-space: pre;"> </span></div><div style="text-align: left;"><br /></div><div style="text-align: left;"><br />बूढ़ा पीपल<br />देख चुका सदियाँ<br />गिनता दिन<br /><span style="white-space: pre;"> </span></div><div style="text-align: left;"><br /></div><div style="text-align: left;"><br />बेटे चुकाते<br />नौ महीनों का कर्ज<br />किश्तों में बाँट<br /><span style="white-space: pre;"> </span></div><div style="text-align: left;"><br /></div><div style="text-align: left;"><br />मैं अपने में<br />अपने ढूँढ़ रहे<br />मुझे पन्ने में<br /><span style="white-space: pre;"> </span></div><div style="text-align: left;"><br /><span style="white-space: pre;"> </span><br />रिश्तों में धोखा<br />बाॅल्कनी में सूखता</div><div style="text-align: left;">वफ़ा का पौधा<br /><span style="white-space: pre;"> </span></div><div style="text-align: left;"><br /></div><div style="text-align: left;">सत्य अकेला<br />खड़ा है डटकर<br />लुढ़का झूठ<br /><span style="white-space: pre;"> </span></div><div style="text-align: left;"><br /></div><div style="text-align: left;"><br />सिसक रहा<br />बाबू की मेज तले<br />बापू का चित्र</div><div style="text-align: left;"><br /></div><div style="text-align: left;"><br /></div><div style="text-align: left;"><br />हमारा कल<br />गमलों में जंगल<br />स्वयं से छल<br /></div><div style="text-align: left;"><br /></div><div style="text-align: left;"><br /></div><div style="text-align: left;">-अलंकार आच्छा</div>Unknownnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-13253261.post-17635037855982952142013-01-16T20:27:00.004-08:002021-05-18T09:10:03.968-07:00हाइकू - डॉ.राजकुमार पाटिल<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">डॉ.राजकुमार पाटिल<br />
<br /><br />
<br />
बर्षा ठहर <br />
नदी नाले उफान<br />
रहम कर</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<br />
यादों का पुल<br />
समय की नदी पे <br />
झूलता हुआ</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <br />
<br />उदास होगा<br />
तुलसी का वो पौधा<br />
घर मे ताला<br />
<br />
<br /> <br />
बर्षा समेटे<br />
घर के जो बर्तन<br />
संगीत रचे<br />
<br /><br />
<br /><br />
कूलर खुश<br />
सब ध्यान रखेंगे<br />
गर्मी आ गई<br />
<br /><br /><br />नाम होगा तो<br />
बदनाम भी होगा<br />
जुड़वां दोनों<br />
<br /><br /><br />
<br />
सुने है बूढें<br />
बूढ़े मन की बातें<br />
कहे चौप<br /><br /><br />
<br />
उंगली ब्रुश<br />
हवा का केनवास<br />
कल्पना का चित्र<br />
<br />
<br /><br />एक जुगनू<br />
घुप अन्धकार मे<br />
क्या कहता है<br />
<br /><br />
आख़री तारा<br />
सूरज से लड़ता<br />
भले वो हारे<br />
<br />
<br />
गाँव के लोग<br />
नहीं है आधुनिक <br />
पर है मस्त<br />
<br /><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">पुकारना तो<br />
वादियाँ बोलती है<br />
तुम्हारा नाम<br />
<br /><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
सुख व दुःख<br />
दो चाकों का खेल<br />
जीवन गाड़ी<br />
<br /><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">पिता की चिंता</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
पिता बन के जानी<br />
व्यर्थ ही नहीं<br />
<br /><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">-डॉ. राजकुमार पाटिल</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
</div>
Unknownnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-13253261.post-86782482510582954572013-01-16T20:26:00.004-08:002021-02-12T08:12:17.281-08:00चयनित हाइकु डा० राजकुमार पटेल<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
चयनित हाइकु<br />
डा० राजकुमार पटेल<br />
<br />
सच की जीत <br />
क्यों लेती है समय?<br />
अभी क्यों नहीं? <br />
<br />
<br />
ना जाने मेघ<br />
है कच्चे कच्चे घर,<br />
बरसे जाए<br />
<br />
पानी यूं गिरा<br />
सड़कें हुई नदी<br />
घर टापू से<br />
<br />
<br />
दौड़ती हवा<br />
बर्षा को है नचाती <br />
इशारे पर<br />
<br />
<br />
नाचती फिजा<br />
बारिश की धुन पे <br />
महक फ़ैली<br />
<br />
<br />
कठपुलती<br />
खुद कब बोलती<br />
इशारा जाने<br />
<br />
<br />
ठंडक देता<br />
समय की धूप मे<br />
याद का साया<br />
<br />
<br />
तराशियें तो<br />
बोल उठे शायद<br />
बेजाँ पत्थर<br />
<br />
<br />
दिखने लगा<br />
डालियों बीच नभ <br />
पतझर में<br />
<br />
<br />
बंद मुट्ठी में <br />
नहीं रहती रेत<br />
मुट्ठी तो खोलो <br />
<br />
<br />
तेज तूफान <br />
टूटे है ऊँचें पेड़ <br />
बची है दूब<br />
<br />
<br />
सूना वो गाँव<br />
कोई नहीं रहता<br />
शहरी सब <br />
<br />
<br />
आधुनिकता<br />
अगवा कर लाई <br />
गाँव के गाँव<br />
<br />
<br />
आँख का पानी<br />
अकारण तो नहीं<br />
कोई निशानी <br />
<br />
<br />
पत्तें में छुपी<br />
नन्ही सी एक बूँद<br />
नदी से डर<br />
<br />
<br />
दिल मे नीड़ <br />
चोंच लिये तिनका<br />
आँख मे चिंता <br />
<br />
<br />
मेघ मल्हार<br />
हरी हुई धरती <br />
जीवन दायी <br />
<br />
<br />
लालची मन<br />
बढ़ाता ही जाए<br />
अपना घेरा<br />
<br />
<br />
चाक पे घुमा<br />
अपनी मिट्टी ज़रा<br />
आकार लेगा<br />
<br />
मिट्टी महकी <br />
पात हरे हो गये<br />
बारिश आई<br />
<br />
<br />
रजाईयों ने <br />
हाथ पैर फैलाये <br />
जाड़ा आ गया <br />
<br />
<br />
छत पे बैठे<br />
सितारों की चौपाल<br />
जाने क्या बात<br />
<br />
<br />
बच्चा गुस्से को<br />
इक पल मे भूला<br />
खिलौना मिला<br />
<br />
भूखें बच्चों को<br />
क्यों खिलौने दिखाए<br />
खिलौने वाला<br />
<br />
<br />
सौंधी महक<br />
बादल का शावर<br />
धरा नहाई<br />
<br />
<br />
चुरा ले गई<br />
चाँद, तारे सब ही<br />
रात चोरनी<br />
<br />
<br />
पीले पत्ते का<br />
हवा ने हाथ थामा<br />
वक़्त आ गया<br />
<br />
<br />
चाँद जुलाहा<br />
रात सफ़ेद परी<br />
पूनम हुई<br />
<br />
<br />
भीगी धूप है<br />
कुछ मोती टीन पे<br />
बारिश गई<br />
<br />
मेघ रे मेघ<br />
टपके है ये छत<br />
धीरे बरस<br />
<br />
<br />
आस का दिया<br />
न बुझा देना कही<br />
वक़्त आएगा<br />
<br />
सबसे कटा<br />
जाने कहाँ मै जुडा<br />
समाज कहाँ<br />
<br />
<br />
शिशु का जन्म<br />
सिर्फ शिशु का नहीं<br />
जन्म माँ का भी<br />
<br />
<br />
कोई न रोके<br />
बिन वीजा के आये<br />
प्रवासी पंछी <br />
<br />
पंछी भटके<br />
दिन मे लौट रहे<br />
सूर्य ग्रहण<br />
<br />
<br />
सूर्य से गिर<br />
सीमेंट के वन मे<br />
धूप भटकी <br />
<br />
<br />
दौड़े हवा मे<br />
महुए की गंध से<br />
बौराई धूप<br />
<br />
जड़ो मे पानी<br />
सूख गया शायद <br />
सींच ये पौंधा<br />
<br />
<br />
रुई का रूप<br />
हाथी के पग धरे<br />
बादल आये<br />
<br />
चाँद छिला है<br />
रात की गुण्डागर्दी<br />
कितनी हावी<br />
<br />
धूप का सोना<br />
रात चांदी की थाल<br />
सबका धन<br />
<br />
<br />
रोडे पत्थर<br />
जले बुझे टायर<br />
कर्फ्यू का दिन<br />
<br />
<br />
माँ की कीमत<br />
अनाथ जनता है<br />
है अनमोल<br />
<br />
सूरज क्या है<br />
लोहार को पता है<br />
रोज ही पीटता<br />
<br />
<br />
गीत गाती है<br />
इक नयी मछली<br />
बूढ़े तालाब मे<br />
<br />
<br />
कोंपल फूटी<br />
जंग लगे लोहे से<br />
मिट्टी थी थोड़ी<br />
<br />
पीछा करता <br />
घने मेघों का दल<br />
घर को चल<br />
<br />
<br />
नींद का धन<br />
मिले नहीं सबको<br />
श्रमिक बन<br />
<br />
<br />
आँगन तेरा<br />
दाने भी है तेरे<br />
लौट आ पंछी<br />
<br />
होली आई तो<br />
धुले रंगों के साथ<br />
बैर भाव भी<br />
<br />
<br />
सूरज लगे<br />
ऊन की गेंद कोई<br />
जाड़े का खेल<br />
<br />
<br />
चाँद की रोटी <br />
थोड़ी थोड़ी खा जाए <br />
न जाने कौन<br />
<br />
<br />
मरा नही वो<br />
जिया देश के लिये<br />
शहीद हुआ<br />
<br />
<br />
शबे-मालवा<br />
कहा किसी ने जब<br />
इंदौर दिखा<br />
<br />
<br />
देखा इन्ही ने<br />
जीवन को जानते <br />
ये आदिवासी <br />
<br />
<br />
<br />
बदल देगी <br />
उसकी अदालत<br />
हर फैसला <br />
<br />
<br />
टीन पे बजा<br />
बारिश का संतूर<br />
सुन्दर बड़ा <br />
<br />
<br />
कुछ न कहा<br />
बेचारी जनता ने<br />
सब है सहा <br />
<br />
<br />
आज बंद है<br />
देश पिछड़ा फिर<br />
एक दिन को<br />
<br />
<br />
केश सुखाये<br />
आसमान की परी<br />
फुहार पड़ी<br />
<br />
<br />
पेड़ था यहाँ <br />
तरक्की ने काटा है <br />
पार्किंग बनी<br />
<br />
<br />
धूप ही धूप<br />
रजाईयों मे है<br />
सूर्य मे सूखी<br />
<br />
<br />
सूर्य की कूची<br />
आकाश की पेंटिंग<br />
सांझ का दृश्य<br />
<br />
शाम के बाद<br />
ध्यानी हुआ आकाश<br />
शांति ही शांति <br />
<br />
<br />
नीम का पेड़<br />
मीठी छाँव बांटता<br />
अजब बात<br />
<br />
<br />
आम चख के<br />
फ़ेंक रहा ये तोता<br />
कैसा रईस<br />
<br />
<br />
बिंदु भी नहीं<br />
ब्रह्मांड मे धरती<br />
तुम क्या चीज़ <br />
<br />
<br />
जब भी कोई<br />
ऊँचाई पे पहुँचा <br />
अकेला हुआ<br />
<br />
<br />
बेटी हुई है<br />
दाई धीरे से बोली,<br />
खामोश सब<br />
<br />
वर्षा के बाद<br />
धूप छींकती हुई<br />
खिड़की पर <br />
<br />
<br />
पेड़ पे बूँदें<br />
नाच रही अब भी<br />
बारिश थमी<br />
<br />
<br />
दिल की चिट्ठी<br />
सब तक पहुंचाता <br />
आँसू डाकिया<br />
<br />
<br />
घर घर मे<br />
टप टप करता<br />
सावन राग<br />
<br />
<br />
अच्छा ही लगे<br />
हर समय मौन<br />
ज़रूरी नहीं<br />
<br />
<br />
गाँव के पाँव<br />
चादर के अंदर<br />
पिछड़े रहे <br />
<br />
<br />
<br />
नदी बैठी है<br />
सिंदूरी आभा लिये<br />
शाम के द्वार<br />
<br />
<br />
गोदी मे बच्चा<br />
सर गठरी लिये<br />
माँ मजदूर<br />
<br />
<br />
एक कंकर<br />
लहर ही लहर<br />
नयन तट<br />
<br />
<br />
<br />
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<a href="http://www.haikukanankbk.blogspot.com/">कमलेश भट्ट कमल </a></div>
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<img height="200" src="http://photos1.blogger.com/blogger/845/1158/320/chandrashekhar%20bisht.jpg" width="162" /><br />
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<a href="http://www.haikukanancsv.blogspot.com/">चन्द्रशेखर विष्ट</a><br />
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<a href="http://www.haikukanansr.blogspot.com/">डा० शैल रस्तोगी</a><br />
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<b><a href="http://www.haikukanansg.blogspot.com/">डा० सुधा गुप्ता</a></b><br />
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<span style="color: #003333;"><b>हाइकु दर्पण के आजीवन सदस्य हाइकुकारों की चुनी हुई हाइकु कविताओं का संकलन है "हाइकु कानन" </b></span><br />
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